Sunday 25 November 2012

सात समंदर पार तक पहुंचा गायक नेगी व राणा का विवाद

सात समंदर पार तक पहुंचा गायक नेगी व राणा का विवाद
नेगी पर केंद्रित राणा के विवादित गीत में उलझा है उत्तराखंडी समाज
-फेसबुक समेत सभी सोशल साइटों में उलझें हैं दोनों गायकों के समर्थक
-नेगी समर्थक उत्तराखंड के एक बड़े नेता पर उठा रहे हैं उंगली
--------हरीश लखेड़ा--------
(sabhar-- AMAR UJALA)

नई दिल्ली, २५ नवंबर। उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी और युवा गायक गजेंद्र राणा के बीच का विवाद इस पहाड़ी प्रदेश की सीमाओं को लांघकर सात संमदर पार तक पहुंच गया है। मामला दिल्ली अथवा मुंबई तक सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया भर में फैले प्रवासी उत्तराखंडियों में भी इस मुद्दे पर चर्चा छिड़ गई है।
इस विवाद की जड़ में राणा का गाया वह गीत है जिसमें बगैर नाम लिए नरेंद्र नेगी को निशाना बनाया गया है। राणा अब इस की वीडियो भी बाजार में लाने की तैयारी में हैं।
इसमें एक बूढ़े गायक पर पैसे लेकर गीत गाने का आरोप लगाया गया है। इस गीत की सीडी बाजार में आते ही राणा पर नेगी समर्थकों का गुस्सा फूट पड़ा है, लेकिन राणा के समर्थक भी मैदान में कूद गये हैं। यह विवाद अब फेसबुक, यू ट्यूब से लेकर तमाम सोशल साटटों में छाया है। नेगी के समर्थक देहरादून के बाद अब दिल्ली समेत एनसीआर में राणा को कार्यक्रमों में बुलाने से रोकने के लिए एकजुट होने लगे हैं। इस पूरे प्रकरण में उत्तराखंड के एक नेता का नाम भी लिया जा रहा है। नेगी समर्थकों का आरोप है कि इस नेता के कहने पर ही राणा से यह गीत तैयार किया।
नेगी उत्तराखंड के सबसे लोकप्रिय गायक माने जाते हैं। उत्तराखंड आंदोलन से लेकर सरकार की जनविरोधी नीतियां, सभी जगह नेगी के गीतों की दमदार उपस्थिति रही है। एनडी तिवारी को लेकर उनका 'नौछमी नारायणÓ तथा रमेश पोखरियाल निशंक को लेकर 'कतगा खैलोÓ गीतों ने भी राजनीतिक तहलता मचाया। नेगी इसे अपनी छवि बदनाम करने की साजिश बताते हैं। उन्होंने कहा कि मामला जनता पर छोड़ दिया है, लेकिन यदि इसका वीडिया आया तो वे देखने के बाद अदालत का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं।
दूसरी ओर राणा अपने गीत पर कायम हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृति की बात करने वाले इन लोगों ने ही विवाद शुरु किया। उनके कार्यक्रमों में हंगामा कराया गया। तिवारी व निशंक पर बेहूदा गीत रचने वाले अब अपने पर कटाक्ष होते ही तिलमिला गये हैं। राणा ने कहा मेरे 'मर्खुली बांदÓ व 'फुरकी बांधÓ का विरोध करने वालों ने 'थैला रेÓ गीत में ब्राह्मणों के कर्मकांड का मजाक क्यों बनाया। वे कहते हैं मेरे गीत आज युवा पीढ़ी की जुबान पर हैं, और वास्तव में वे नये लोगों को रास्ता नहीं देना चाहते हैं। वे इप मामले में किसी नेता के शामिल होने की बात से इनकार करते हैं।
बहरहाल, नेगी के समर्थन में उतरे दिल्ली के उद्यमी विनोद बछेती तो एनसीआर क्षेत्र में राणा के कार्यक्रमों के बहिष्कार के लिए सभी संस्थाओं को एकजुट करने में लगे हैं। कनाडा निवासी व पहली गढ़वाली फिल्म के निर्माता पारासर गौड़ हों या दिल्ली में रह रहे प्रसिदध लोकगायक चंद्र सिंह राही या देहरादून से गढ़वाली फिल्मों के हीरो व गीतकार मदन डुकलाण अथवा मुंबई के पत्रकार केशर सिंह बिष्ट , सभी कमोबेश यही कहते हैं कि इस विवाद उत्तराखंडी फिल्म उद्योग के हित में नहीं हैं। इससे उत्तराखंड की छवि खराब हो रही है।

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