Monday 24 December 2012


पहली बार रुपहले पर्दे पर उतरी राजुला मालूशाही की प्रेमगाथा 
दिल्ली फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित पहली उत्तराखंडी फिल्म
 
हरीश लखेड़ा
नई दिल्ली, २२ दिसंबर(2012)। अब तक लोककथाओं, लोकगाथाओं और रंगमंच तक सिमटी  उत्तराखंड की प्रसिद्ध 'राजुला-मालूशाहीÓ प्रेमगाथा पहली बार रुपहले पर्दे आई है। गढ़वाली-कुमाउंनी व हिंदी में साझा तौर पर बनी इस फिल्म को यहां दिल्ली फिल्म महोत्सव में जगह मिली है। शनिवार को यहां एनडीएमसी कनवेंशन सेंटर में इस फिल्म दिखाई गई।
राजुला-मालुशाही कथा सिर्फ लोकगाथा नहीं है, बल्कि यह इतिहास के पन्नों पर भी दर्ज है। १५वीं शताब्दी की ऐतिहासिक घटना पर आधारित यह लोकगाथा  कुमांयु के बैराट के कत्यूरी राजकुमार मालूशाही और जौहार के शौका वंश की राजकुमारी राजुला की प्रेम कहानी है, जो उत्तराखंड के लोक चेतना व लोकसंस्कृति में आज भी जिंदा है।इस कथा के अनुसार राजुला व मालूशाही के जन्म से पहले ही शादी तय कर ली जाती हैै, दोनों बचपन से ही एक-दूसरे के सपने में आते हैं, इसके बावजूद दोनों का दुखद अंत होता है। यह लोकगाथा अब तक  रंगमंच पर उतरी रही है, लेकिन इसे चित्रपट पर उतारने की कोशिश नहीं की गई। जबकि उत्तराखंडी सिनेमा अब तक तीन दशक का सफर पार कर चुका है। फिल्म के निर्माता मनोज चंदोला कहते हैं कि वे उत्तराखंड की इस अनूठी लोककथा को देश- दुनिया के सामने रखना चाहते थे, चूंकि शहरों में पली-बढ़ी पीढ़ी गढ़वाली-कुमाउंनी ज्यादा नहीं जानती है, इसलिए उन तक इस लोकगाथा को पहुंचाने के लिए फिल्म को हिंदी में बनाया गया। उत्तराखंडी फिल्मों के अभिनेता मदन हुकलाण इसे सार्थक प्रयास बताते हुए कहते हैं कि अभी जीतू बगड़वाल जैसी लोगगाथाओं को भी चित्रपट पर लाने का प्रयास होना चाहिए।
जौहार क्षेत्र के मुंस्यारी निवासी डा. एसएस पांगती की राजुला-मालूशाही को लेकर की रिसर्च से भी इस फिल्म के निर्माण में मदद मिली। उन्होंने राजुला-मालूशाही पर किताब लिखी है, इसमें लोकगाथा के सभी ४० रूप दर्ज हैं। उन्होंने फिल्म में काम भी किया है। पांगती ने कहा कि यह कहानी हमें अपने गौरवशाली इतिहास की याद दिलाती है। शनिवार को दिल्ली फिल्ममहोत्सव में प्रदर्शिन इस फिल्म को देखने के लिए केंद्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा सांसद भगत सिंह कोश्यारी, सांसद प्रदीप टमटा, उत्तराखंड के दो मंत्री इंदिरा हृदयेश व मंत्री प्रसाद नैथानी तथा विपक्ष के नेता अजय भट्ट भी जमे रहे। कोश्यारी के अनुसार उन्होंने १९६२ के बाद व नैथानी ने २०साल बाद किसी हॉल में देखकर फिल्म देखी।
-----------(sabhar-Amar Ujala)

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